400 फीसदी बढ़ीं ऑनलाइन शोषण की घटनाएं, 2020 में हर रोज दर्ज किए गए 350 से अधिक मामले

बच्चों के खिलाफ हिंसा न केवल उनके जीवन और स्वास्थ्य को, बल्कि उनकेभावात्मक कल्याण और भविष्य को भी खतरे में डालती है. भारत में बच्चों के खिलाफ हिंसा अत्यधिक है और लाखों बच्चों के लिए यह कठोर वास्तविकता है. दुनिया के आधे से अधिक बच्चों ने गंभीर हिंसा को सहन किया हैं और इस तादाद के 64 प्रतिशत बच्चे दक्षिण एशिया में हैं. ये बातें यूनिसेफ ने अपने एक आर्टिकल में कही है. और अब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के डाटा के विश्लेषण में देश में होने वाले अपराधों का आंकड़ा सामने आया है. जो काफी चौकाने वाली डेटा हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के डाटा के हिसाब से साल 2020 में बच्चों के खिलाफ रोज 350 से ज्यादा अपराध हुए. इसके साथ ही बाल विवाह और ऑनलाइन शोषण की घटनाओं में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है. यह जानकारी शुक्रवार को एक एनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के डाटा का विश्लेषण करने के बाद साझा की है. 

अमर उजाला में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में पिछले साल बच्चों के खिलाफ अपराध के कुल 1,28,531 मामले दर्ज किए गए, जिसका मतलब है कि महामारी के दौरान हर दिन ऐसे औसतन 350 मामले सामने आए. हालांकि, चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने अपने विश्लेषण में कहा कि 2019 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों की तुलना में, ऐसे मामलों की कुल संख्या में 13.3 प्रतिशत की गिरावट आई है.

वर्ष 2019 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1,48,185 मामले दर्ज किए गए थे जिसका मतलब है कि देश में हर दिन ऐसे 400 से अधिक अपराध हुए. हालांकि बाल अधिकार संगठन ‘क्राइ’ ने अपने विश्लेषण में कहा है कि साल 2019 के मुकाबले 2020 में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में गिरावट आई है. लेकिन एनसीआरबी का डाटा बताता है कि साल 2019 में ऐसे एक लाख 48 हजार 185 मामले दर्ज किए गए थे. इसका मतलब है कि 2019 में रोजाना बच्चों के खिलाफ 400 से अधिक आपराधिक घटनाएं हुईं. यह साल 2020 के मुकाबले 13.3 फीसदी अधिक है. बाल विवाह के मामलों में 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है जबकि एक वर्ष में ऑनलाइन दुर्व्यवहार के मामलों में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

संगठन ने कहा, “राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है पूरे देश में बच्चों के खिलाफ अपराध के जितने मामले सामने आए, उनमें से 13.2 प्रतिशत मामले मध्य प्रदेश, 11.8 प्रतिशत उत्तर प्रदेश, 11.1 प्रतिशत महाराष्ट्र, 7.9 प्रतिशत पश्चिम बंगाल और 5.5 प्रतिशत बिहार से सामने आए. देश में सामने आए कुल मामलों में से 49.3 प्रतिशत मामले इन राज्यों से हैं।”

विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में बच्चों के खिलाफ अपराधों में पिछले एक दशक (2010-2020) में 381 प्रतिशत की तेज वृद्धि हुई है जबकि देश में कुल अपराधों की संख्या में 2.2 प्रतिशत की कमी आई है.

यह विश्लेषण हाल में विश्व श्रमिक संगठन (आईएलओ) की बाल श्रम 2020 रिपोर्ट के वैश्विक अनुमानों के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि 2016 की तुलना में 2020 में पांच से 11 वर्ष के आयु वर्ग के 1 करोड़ 68 लाख से अधिक बच्चे बाल श्रम में लिप्त थे. नए विश्लेषण से पता चलता है कि महामारी के कारण बढ़ती गरीबी के परिणामस्वरूप 2022 के अंत तक 89 लाख और बच्चे बाल श्रम को मजबूर होंगे.

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