लोकसभा में OBC आरक्षण के लिए संविधान संशोधन बिल को मिली संसद की मंजूरी, राज्यों को मिलेगा पहचान करने का अधिकार

हंगामे और शोर-शराबे के बीच चल रहे संसद के मॉनसून सत्र का आखिरी हफ्ता शुरू हो गया और इस दौरान मोदी सरकार अहम बिल पास करवाने की कोशिश कर रही है और इनमें सबसे ऊपर ओबीसी आरक्षण से जुड़ा संविधान संशोधन विधेयक है. विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने भी कहा है कि वह इस बिल के समर्थन में है. अब लोकसभा में संविधान 127वां संशोधन विधेयक 2021 मंगलवार को पारित हो गया. यह विधेयक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की अपनी ओबीसी सूची बनाने की शक्ति को बहाल करने के लिए है.

मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में ऐसा बहस पहली बार दिखा. सरकार अपनी बात कहती रही और विपक्षी सांसद अपनी सीट पर बैठकर बहस सुनते रहे. कहीं कोई हंगामा नहीं, कही नारेबाजी नहीं. लोकसभा में भी ओबीसी संशोधन बिल पास हो गया. अब राज्यों को ये हक मिल गया है कि वे ओबीसी की अपनी लिस्ट बनाएं. ये बहुत पुरानी मांग थी, जिस पर पक्ष-विपक्ष साथ थे.

दरअसल, लोकसभा में सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ पेश किया जो राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने के लिए सशक्त बनाता है.

इससे राज्यों और केंद्र शासित प्रदशों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की लिस्ट तैयार करने का अधिकार मिलेगा. इसी साल 5 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर पुर्नविचार की याचिका पर सुनवाई करने की मांग खारिज कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 102वें संविधान संशोधन के बाद OBC लिस्ट जारी करने का अधिकार केवल केंद्र के पास है.

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री (Union Minister) डॉ. वीरेंद्र कुमार ( Dr. Virendra Kumar) ने निचले सदन में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंधित ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ ( 127 Constitution Amendment Bill 2021) पेश किया. मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा कि विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष का विरोध राजनीतिक है. उन्होंने विधेयक के संबंध में कहा कि विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्री भी लगातार इसे लाने की मांग कर रहे हैं.

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि संविधान 102वां अधिनियम 2018 को पारित करते समय विधायी आशय यह था कि यह सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची से संबंधित है. यह इस तथ्य को मान्यता देता है कि 1993 में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की केंद्रीय सूची की घोषणा से भी पूर्व कई राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की अन्य पिछड़े वर्गों की अपनी राज्य सूची/ संघ राज्य क्षेत्र सूची हैं.

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