अनाथों की माता सिंधुताई के अत्यंत कठिन जीवन यात्रा और संघर्ष की कहानी शानदार कविता के रूप में

पूरे महाराष्ट्र में अनाथों की माता के रूप में जानी जाने वाली सिंधुताई का सोमवार यानी 4 जनवरी, 2022 को 75 साल की उम्र में पुणे के गैलेक्सी अस्पताल में निधन हो गया. उनकी जीवन यात्रा अत्यंत कठिन थी. चंद पंक्तियों द्वारा उनके संघर्ष की कहानी को लेखिका नीतू बर्णवाल ने उकेरने भर का प्रयास मात्र किया है, प्रस्तुत है –

पिपरी मेघे गांव में
जब गूंजी उसकी किलकारी,
बेटे की चाह रखे परिवार से
मिलती रही दुश्वारी.

बारह की उम्र में
तीस से हो गई ब्याह,
ठीक से उजाला भी न देखा
जिंदगी होती रही स्याह.

अनपढ़ पति को
उसकी पढ़ाई की भूख न भाइ,
अपने पुरुषार्थ पर चोट समझ
करता रहा पिटाई.

तिरस्कार सहे
जाने कितनी गालियां खाई,
फिर भी नौ माह का गर्भ लिये
घर से गई निकाली.

गाय के तबेले में
अभागी बेटी को दिया जन्म,
जिसका आज था मुश्किल
असुरक्षित था कल.

रेलवे स्टेशन पर भीख मांग
जठराग्नि को शांत कराती,
रात श्मशान में भूतनी बन
खुद की लाज बचाती.

आत्महत्या का ख्याल कर
ज्यों ही कदम बढ़ाया,
एक भिखारी की कराहट ने
उसका जमीर झंझोरा.

सोचा मरने से बेहतर है
अभागों के भाग सुधारूं,
फिर हुई समाज सेवा की
पथ यात्रा शुरू.

अनाथों को सनाथ किया
भीख मांग भरे उनके पेट,
कटोरा छीन -छीन
पकडाती रही पेन्सिल स्लेट.

जाने कितने अनाथों ने
उनकी उँगली पकड़ अपने मंजिल पाये,
पंद्रह सौ बच्चों की माँ ने
सम्मान भी अनगिनत पाये.

पर अब फिर कर गई
सनाथों को अनाथ,
चली गई वो मसीहा
छोड़ अपना मधुर साथ.

मुश्किलों से लड़ी, डर से न डरी
न ही किसी को कोसा,
मानवता का पाठ पढ़ा कर
अमर हो गई, महाराष्ट्र की मदर टेरेसा.

 

-लेखिका
नीतू बर्णवाल

 

ये लेखिका के निजी विचार है.

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