कोरोना अवकाश एवं महिलाएं

वैश्विक महामारी कोरोना की काली छाया जब संसार पर पड़ रही है, तब समाज में कई ऐसा वर्ग है, जिसने इस भयंकर महामारी से लड़ने हेतु प्रत्यक्ष रूप में शस्त्र उठाया है। इसमें वर्तमान सरकार, प्रशासन, पुलिस, डॉक्टर, नर्स, सफाई कर्मी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। इस कर्फ्यू जैसे हालात में, इन महारथियों के अलावे एक वर्ग और भी है जो अप्रत्यक्ष रूप से कोरोना से लड़ने में पूरे ताकत और जोश के साथ सक्रिय है और वो है घर की महिलाएं।

सांकेतिक तस्वीर (फ़ोटो-shutterstock)

लॉकडाउन में दौड़ती भागती जिंदगी जब किश्तों पर रेंगने को मजबूर हुई तो इसको सँभालने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी इन्हीं महिलाओं पर आई है। क्लब, किट्टी पार्टी, शॉपिंग, गॉसिप में व्यस्त रहने वाली इन महिलाओं ने तत्क्षण अपने कंधे पर जिम्मेदारियों का टोकरा उठा लिया है। घर के प्रत्येक सदस्य की देखभाल और उनके अवकाश के बड़ी भूख की जिम्मेदारी इनके ऊपर आन पड़ी है। बच्चों ने हैंडवाश किया कि नहीं, बुजुर्ग घर से बाहर निकल तो नहीं गए, पति महोदय ने साफ सफाई का ख्याल रखा कि नहीं, इसे भी देखने का काम ये बखूबी कर रही हैं।

सांकेतिक तस्वीर (फ़ोटो-बेटर इंडिया)

भूख मिटाने के लिए जरूरी सामान के जुगाड़ करने के लिए इन्होने तो अभियान ही छेड़ दिया है। विपरीत परिस्थितियों में कम से कम पेट भरा जा सके इसकी सबसे ज्यादा फ़िक्र इन्हें ही है। इस दुर्दिन में निरोग रहने हेतू , सीमित संसाधनों द्वारा रसोई में नित्य नए प्रयोग करने में भी ये मोहतरमा आगे हैं।आखिर क्यों न हो, हमेशा पति के छुट्टी का इंतजार करने वाली इन महिलाओं को आज पति के रात दिन का साथ भी तो मिल रहा है।

बाई छुट्टी पर, बच्चे घर पर, सास-ससुर की हर पाँच मिनट के बाद आती “बहु, बहु” की आवाजों के बीच पति की एक प्यार भरी नजर से तो महिलाएं मानों तरों ताजा हो उठती हैं और यदि पति महोदय ने जरा भी मदद कर दी तो रसोड़े में “बारी जाऊं” वाली मूड में आ जाती है।

सांकेतिक तस्वीर (फ़ोटो-shutterstock)

हमेशा फैशन सर्च करने वाली आजकल लॉकडाउन में कम सामग्री में नए व्यंजन बनाने के तरीके खोज रही है।सरकार ने घरेलू चहारदीवारी में रहने के आदेश जारी तो कर दिए पर इनके अंदर रहने का गुर सबों को यही गृहलक्ष्मी सीखा रही है।

सास ससुर को रामायण महाभारत के टाइम टेबल समझाना, बच्चों को आर्ट एंड क्राफ्ट में उलझाए रखना और पतिदेव को चाय बनाने का जिम्मा सौपकर, चंद पल के साथ का समय भी खोज लिया है। ये महिलाएं बड़ी आशावान, कर्मठ, परिस्थिति के अनुरूप कार्य करने में सक्षम और खुशमिजाज होती है। घर के तमाम सदस्यों के चेहरे पर खुशी और इत्मीनान बनाए रखने की कला सिर्फ इन्हें ही आती है।

सांकेतिक तस्वीर (फ़ोटो-इंडिया टाइम्स)

इस लॉकडाउन में उन्हें एक चीज जरूर मिली है – वह है सुबह का इत्मिनान। बच्चों के स्कूल और पति के ऑफिस जाने की जल्दी में होनेवाली भागा दौड़ी के अभाव में अब ये कवयित्री, लेखक और बच्चोंको संस्कार सिखाने वाली आचार्य बन गयी हैं अब ये ख़ाली समय में अपने कई स्थगित पड़े कार्यों को कर रही हैं। इस तरह से तमाम कोरोना वारियर्स में, ये महिलाएं भी प्रशंसा की पात्र हैं, जिन्होंने “लॉकडाउन वाले लोकतंत्र” में वास्तविक सत्ता सम्हाल रखी है और इस आशा में हैं कि जिंदगी मिलेगी दोबारा, अवश्य मिलेगी दोबारा।

नीतू बरनवाल

लेखिका एक सुशिक्षित एवं सफल गृहिणी हैं.

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