राजद्रोह की IPC की धारा 124 A की चुनौती देने की नई याचिका के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र पर बड़ा सवाल है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश में राजद्रोह कानून के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की है. CJI एनवी रमना ने भी विरोध को रोकने के लिए कथित तौर पर 1870 में औपनिवेशिक युग के दौरान डाले गए प्रावधान (IPC की धारा 124 A) के उपयोग को जारी रखने पर आपत्ति व्यक्त की.

CJI एनवी रमना ने कहा कि राजद्रोह कानून (Sedition Law) का इस्तेमाल अंग्रेजों ने आजादी के अभियान को दबाने के लिए किया था, असहमति की आवाज को चुप करने के लिए किया था. महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर भी ये धारा लगाई गई, क्या सरकार आजादी के 75 साल भी इस कानून को बनाए रखना चाहती है?
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधान न्यायाधीश (CJI) ने अटार्नी जनरल ने आगे स्पष्ट करते हुए कहा कि वह प्रावधान के दुरुपयोग के लिए किसी राज्य या सरकार को दोषी नहीं ठहरा रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, निष्पादन एजेंसी और विशेष रूप से अधिकारी इसका दुरुपयोग करते हैं. धारा 66A को ही ले लीजिए, उसके रद्द किए जाने के बाद भी हज़ारों मुकदमें दर्ज कर लोगों को गिरफ्तार किए गए. हमारी चिंता कानून का दुरुपयोग है.
सुनवाई के दौरान CJI एनवी रमना ने कहा कि “सरकार कई कानून हटा रही है, मुझे नहीं पता कि वे इस पर गौर क्यों नहीं कर रहे हैं.” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह राजद्रोह कानून की वैधता का परीक्षण करेगा. मामले में केंद्र को नोटिस दिया गया तथा अन्य याचिकाओं के साथ इसकी सुनवाई होगी. SC ने कहा कि राजद्रोह कानून संस्थाओं के कामकाज के लिए गंभीर खतरा है.
शीर्ष अदालत सेना के दिग्गज मेजर-जनरल एसजी वोम्बटकेरे (सेवानिवृत्त) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के अपराध की संवैधानिकता को ‘अस्पष्ट’ होने और ‘ बोलने की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव’ होने के लिए चुनौती दी गई थी.
अधिवक्ता प्रसन्ना एस के माध्यम से दायर की गई याचिका में याचिकाकर्ता की दलील है कि आईपीसी की धारा 124ए संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के विपरीत है, जिसे अनुच्छेद 14 और 21 के साथ पढ़ा जाता है. और बोलने की आजादी पर संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य डराने वाले प्रभाव का कारण बनता है.
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने देश की रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दिया. हम यह नहीं कह सकते कि यह कोई प्रेरित मुकदमा है.” अटॉर्नी जनरल ने मामले में कहा कि धारा को निरस्त करने की जरूरत नहीं है. लेकिन राजद्रोह के कानून का उपयोग करने के लिए मानदंड निर्धारित किए जा सकते हैं ताकि धारा अपने कानूनी उद्देश्य को पूरा कर सके.