कोरोना की दूसरी लहर से भारत की अर्थव्यवस्था के साथ कमजोर हुई विदेश नीति

कोरोना वायरस की दूसरी लहर भारत के लिए कई मुसीबतें लेकर आई. इस दौरान एक ओर जहां बहुत से लोगों की जान गई और लाशों को नदियों में बहाने की तस्वीरें सामने आईं, कोरोना ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित किया है. जिससे भारत की सेना को आधुनिक बनाने का प्लान भी प्रभावित हुआ है. जबकि उत्तरी सीमा पर चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए ऐसा किया जाना जरूरी था.

Symbolic Image (Getty Pic)

वहीं दूसरी ओर भारत अपनी कई अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां निभाने से भी चूका. भारत के वैक्सीन निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले से जहां ‘कोवैक्स प्रोग्राम’ धीमा हुआ, वहीं बांग्लादेश जैसे पड़ोसी भी काफी परेशान हुए. भारत के वैक्सीन निर्यात पर बैन के फैसले के बाद बांग्लादेश ने अप्रैल अंत में अपनी जनता को कोवीशील्ड की पहली डोज देने पर रोक लगा दी थी.

जिसके बाद उसे चीन ने लाखों वैक्सीन गिफ्ट कीं और अब बांग्लादेश चीन से वैक्सीन खरीद भी रहा है. बांग्लादेश में नई वैक्सीन के तौर पर लोगों को अब ‘साइनोवैक’ दी जा रही है. चीन पहले ही अपनी आर्थिक मदद की रणनीति के जरिए भारत को भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित करने की कोशिश कर रहा था. कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने इस प्रक्रिया को तेज करने का काम किया है.

ऐसा नहीं है कि भारत के लिए सभी परिस्थितियां नकारात्मक ही हों. गंभीर संकट अपने साथ अवसर भी लाते हैं. भारत भी इस संकट को अवसर के तौर पर भुना सकता है. डी डब्लू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सोसाइटी फॉर पॉलिसी स्टडीज के डायरेक्टर सी उदय भास्कर कहते हैं, “भारत ने अपनी छवि ऐसी बना रखी थी कि वह अपने साथ-साथ पड़ोसियों की वैक्सीन जरूरतों को भी पूरा कर देगा. शुरुआत में उसने ऐसा किया भी. लेकिन फिर उसने अपने पड़ोसियों को अधर में छोड़ दिया. ऐसे में भारत की छवि तो खराब हुई ही है.”

दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश होने के कारण भारत मुश्किल में पड़ोसी देशों की मदद कर सकता है और इस क्षेत्र के देशों से ऐतिहासिक संबंधों के कारण राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल भी कर सकता है. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद इस इलाके में भारत का प्रभाव लगातार कम हो रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में विदेश संबंधों के प्रोफेसर हैप्पीमोन जैकब लिखते हैं, “भले ही 17 साल बाद भारत को विदेशी मदद स्वीकार करनी पड़ी हो लेकिन भारी मात्रा में भेजी गई मदद दिखाती है कि दुनिया मान रही है कि भारत को नजरअंदाज करना मुश्किल है. लेकिन दूसरी ओर संशय भी है कि जबतक वह फिर अपने पैरों पर नहीं खड़ा हो जाता, पश्चिमी दुनिया के किसी काम का नहीं होगा. महामारी के चलते नई दिल्ली के दक्षिण-एशियाई इलाके की बड़ी ताकत और नेता होने के दावे को बड़ा झटका लगेगा. आने वाले सालों में भारतीय विदेश नीति पर इसका असर भी पड़ेगा.”

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